((( इन्टरनेट -शुक्रिया )))
यह इन्टरनेट भी क्या चीज बना डाली है
सारी दुनिया ही इस में समां डाली है
में लिखता हूँ अपने शेहर से कुछ अल्फाज
और इस ने प्रेम की माला ही बना डाली है !!
न मिले न किसी से मुलाकात कर पाया
एक दुसरे की पहचान यहाँ कर डाली है
कितनो से मिलते हैं विचार ,कितनो से नहीं
इक नई शिक्षा की नीव इसने यहाँ डाली है !!
अपनों से दूर हैं अब कुछ ऐसा लगता नहीं
जल्दी न मिल पाए , ऐसा भी लगता नहीं
रिश्ते आप सब के साथ अब ऐसे पनपने लगे
हम दूर हैं, या पास, हम अब आपके लगने लगे !!
क्या आपने कहाँ, क्या बिता गया था कल
सब कुछ यहाँ पर अब रोज दिखने लगा
बस सिलसिला इन जज्बातों का चलता रहे
सब दूरियन इन्टरनेट ने “अजीत” मिटा डाली हैं !!
अजीत तलवार
मेरठ