“इन्कलाब लिखता हूँ “
ग़ज़ल लिखने की एक छोटी सी कोशिश
“इन्कलाब लिखता हूँ ”
ग़मज़दा होता हूँ जब कभी
अपने जज़्बात लिखता हूँ मैं
अन्दर से टूटने लगता हूँ जब भी
अपने अधूरे ख्वाब लिखता हूँ मैं
सोचता हूँ बैठकर हासिल क्या है
मेरी की हुई कोशिशें लिखता हूँ मैं
डूबता हूँ तनहाइयों में ग़र कभी
सोचों का समंदर लिखता हूँ मैं
खुश हो जाता हूँ थोड़ी सी ख़ुशी में
बस अपनी मुस्कान लिखता हूँ मैं
पूछते हैं सब ये क्या लिखते हो ‘कुमार’
मैं बोला कलम से इन्कलाब लिखता हूँ मैं
“सन्दीप कुमार”