इनकम टैक्स का गलत स्लेब( अतुकांत कविता)
इनकम टैक्स का गलत स्लेब( अतुकांत कविता)
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हजूर ! ढाई लाख से पंद्रह लाख तक कमाने वाला तो मध्यम वर्ग में आता है,
साधारण व्यक्ति कहलाता है ,
मासिक किस्तों पर ही रहने के लिए मकान खरीद पाता है ।
गृहस्थी का बोझ ढोता है,
हाँ ! वाशिंग मशीन में कपड़े जरूर धोता है।
छत पर बँधी डोरी पर खुद जाकर सुखाता है,
बेशक स्कूटर बाइक या निजी कार चलाता है,
बस इसी बात पर आपका मुँह फूल जाता है।
इतने फंदे तो कोई कबूतरों के लिए जाल बिछाने में भी नहीं डालता, जितने सरकार ! आपने इनकम टैक्स स्लैब में डाले हैं ,
जरा सोचिए ! हम कहाँ मजे में जीने वाले हैं,
असली तो पन्द्रह लाख रुपए से ज्यादा कमाने वाले हैं।
पहला स्लेब इनकम टैक्स का पन्द्रह लाख रुपए से पचास लाख रुपए का बनाते ,
दूसरे में पचास लाख रुपए से एक करोड़ वाले आते ।
फिर एक करोड़ से दो करोड़ रुपये वालों का स्लेब आता,
देश को पता तो चल जाता कि धनवान किसे कहते हैं ?
हमारे देश में कितने रहते हैं ?
हर साल एक फ्लैट खरीद लें, जिनकी बचत इतनी हो जाती है ,
जिनकी कार पचास लाख रुपए से ऊपर की आती है ।
जिनके लिए स्विट्जरलैंड घूम कर आना /
ऐसे ही है जैसे ढाई से पन्द्रह लाख रुपए वालों के लिए इतवार की छुट्टी में सिनेमा देखने जाना ।
जो घर में एक करोड़ रुपए से ऊपर की नकदी रखते हैं ,
फाइव स्टार से कम में भोजन का स्वाद नहीं चखते हैं ।
पन्द्रह लाख आमदनी से ऊपर वाले देश के सब लोगों को एक साथ एक स्लेब में रखना एक अबूझ पहेली है ,
क्योंकि हजूर ! इस स्लेब में कोई राजा भोज है- कोई गंगू तेली है ।
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रचयिता : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99 97 61 5451