इत्र और तू
तेरे मिलने की खुशी भी इत्र सी है।
तू रुबरु होने वाला होता है,
और मैं महकने लगती हूँ।
अजीब सिलसिला है,
तेरे जज्बातों के सैलाब में,
अनजाने में ही सही, बहकने लगती हूँ।
कशिश कहुँ या आदत,
नशा हो या चाहत,
आखें मूंदे तेरी ओर बढ़ने लगती हूँ।
बस एक कदम और,
फिर मेहनत कामयाबी होगी,
इसी अहसास में सिमटने लगती हूँ।