इतिहास के साथ छेड़ छाडं नहीं होती
संजय लीला भंसाली की धटना ने भारतीय जनता का ध्यान अपनी ओर खिचां है। चारों ओर इस की निन्दा हो रही है। परन्तु वास्तविकता बहुत कम लोग जानते है।
संजय लीला भंसाली ने इतिहास के केवल के पात्र के नाम में थोड़ा परिवर्तन कर के , बाकी सब कुछ वास्तविकता लेकर फिल्म बना रहे है। वो भी राजस्थान के राजपूत इतिहास में चित्तौड़ की रानी का नाम पाद्मिनी का नाम बदल कर पद्मावती रख दिया है।
” मेरी दृष्टि में ” जब इतिहास के साथ छेड़- छाडं होती है तो लोगों का गुस्सें का सामना तो करना ही पड़ेगा । सिर्फ रानी का नाम बदलने से फिल्म काल्पनिक नहीं मानी जा सकती है। आज भी राजस्थान के इतिहास के साथ- साथ भारतीय इतिहास में भी चित्तौड़ की रानी पद्मिनी का नाम आदर और सम्मान के साथ लिया जाता है। जो खूबसूरत वीर राजपूतना नारी मानी जाती है। वह चित्तौड़ की आन बान और शान के लिए 16000 राजपूत नारी के साथ जौहर में कूद गर्ई थी । चित्तौड़ के राजा रतन सिंह को कैद कर के अलाउद्दीन खिलजी दिल्ली ले गये। चित्तौड़ के महल में प्रवेश कर के जीत तो हासिल कर ली थी। रानी मरने के बाद भी उसे हाथ तक नहीं लगा पाया था । राजस्थान में रानी के प्रति कोई सम्मान में कमी देखने को नहीं मिलती है। ऐसे में इतिहास के साथ छेड़- छाडं कर के फिल्म बनाना कभी भी उचित नहीं कहाँ जा सकता है।