इतिहास के अन्दर
—अरुण कुमार प्रसाद
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शृंखलाबद्ध है इतिहास।
पृथ्वी का और ब्रह्मांड का भी।
मनुष्य का बेतरतीब है सिर्फ।
ब्रह्मांड में
हर जर्रा भगवती का रूप है
क्योंकि सब ही
नयी रचनाओं का स्वरूप है।
बंटा कुछ नहीं
अशुद्ध और शुद्ध में।
यह तो मनुष्य है जो
बंटा है स्याह और श्वेत में।
शुद्ध और अशुद्ध नस्ल में।
अजीब अविवेकी अक्ल में।
संसार की सैर को निकलें तो-
मिलते हैं हम, लोगों से।
वे,
लोग कम बल्कि,व्यवहार में
पशु ज्यादा हैं।
नफा सोचते हैं।
नुकसान देखते हैं।
नुकसान का आकलन नफा में
और नफा का नुकसान में
करते हैं।
फिर दोस्ती या दुश्मनी।
जीवन जीने का ईश्वर द्वारा तय,
यही क्या कायदा है?
दण्ड या पुरस्कार।
वैधानिक अधिकार।
आदमी करता है अर्जित।
आदमी सिलसिला होने के बाद भी
अ मृत सा व्यवहृत।
दंडित होकर भी दण्ड दूसरा करने को उत्सुक।
नयी वासनाओं का लगातार इच्छुक।
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