इतिहास का हथियार
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इतिहास बनाकर हाथों में
हथियार
युद्ध करने वाले
ऐसे हथियारों को लेकर कैसेॐ
रण में हो निकल पड़े।
इतिहास लिए फिरते जो तुम
उत्पीड़न‚शोषण‚लूट–मार‚हत्याओं से
है भरा हुआ
और इसे हथियार बनाकर
तथा उठाकर घूम रहे।
कर रहे गर्व से उन्नत सिर।
पुरखे मेरे थे महाबली
वैभव संचय को बाहुबली
कहते करना था शर्म
कर रहे गर्व
बड़ा दुÁखपूर्ण‚बड़ा आश्चर्य।
अधिकार कुचलकर‚पीड़ित कर
जन–जन को
वैभव जमा किया।
अरे‚समाहित है इन
इतिहासों में रक्त।
प््राशस्त मन को कर देता ध्वस्त।
इसे चमकाना कर दे बंद।
वेदों और ऋचाओं में
मन्त्रों में या फिर शास्त्रों में
शब्द सभी अभिशापित हैं।
मढ़े हुए हैं अर्थ असत्य से आख्यायित।
और यही
इसे हथियार बनाकर हाथों में
चहुँदिश
अबाध हैं घूम रहे।
कुछ कुटिल कहकहे
है वसुंधरा को ताक रहे
इतिहास बनाने अस्त्र–शस्त्र
वह झाँक रहे।
इतिहास नहीं होता है
कभी हथियार
यार मत इसे बना।
यह सभ्यता‚संस्कृति का
धर्म‚कर्म और मर्म
इसे करने देना सत्कर्म।
भ्विष्य का पथ करना है दर्म।
इसका इतना है माने
व्यवहार नहीं दुÁख फैलाने।
ऐसे इतिहासों को
हथियार बनानेवालों को
आओ रोको–
संकल्पित मन‚चैतन्य हो तन
और कर अगाध तेरा नैतिक बल।
तुझे आत्म संचयन करना है।
यह वक्त
विलक्षण करना है।
इतिहासों से प्रहार
नहीं है देना होने।
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अरूण प्रसाद
अगस्त 2006