इतनी भी क्या जल्दी थी कलाम
इतनी जल्दी क्या थी ऐ कलाम ! दुनिया से रुखसत लेने की .
अभी तुम्हारे मादर -ऐ- वतन को तुम्हारी बहुत ज़रूरत थी .
आने वाली पीडी को तुम्हारे मार्ग -दर्शन की बहुत ज़रूरत थी ,
विदेशी तकनिकी को त्यागकर स्वदेशी तकनिकी अपना कर ,
तुम्हारे दम पर खुद्दारी से जीना हम भारतीओं ने सीखा था अभी ,
यूँ अपने सपनो के लिए जीना सिखाकर ,दामन छुड़ाने की क्या ज़रूरत थी
अब खैर ! हो सके तो लौट के ज़रूर आना , हम इंतज़ार करेंगे,
क्योंकि हमें एहसास है तुम थे क़ज़ा के हाथों मजबूर ,
वर्ना यूँ तुम ना जाते ,तुम्हें भी तो हमारे साथ और प्यार की बहुत ज़रूरत थी .