इतना मुश्किल भी नहीं ….
इतना मुश्किल भी नहीं हैं
ख्वाबों का पलना
सूरज का ढलना
चांद तारो का निकलना
एक एक कर तोड़ लाओ
फलक से तारे तुम
रोशनाईं रहे जहां में
चांद को न निगलना
रूठ जाएगी जुगनूं
कली कुम्हल जाएगी
देख पाओगे कैसे गुलशन में
रोज भौरों का मचलना
रेखा”कमलेश ”
होशंगाबाद मप्र