इतना मत लिखा करो
इतना मत
लिखा करो
कि आसमान
फट जाये..
माना
शब्द ब्रह्मांड
में
रहते हैं
मगर तुम्हें क्या..?
तुम तो..
राजनीति में हो..!
कौन सा तुम्हें
तोलते हैं..?
जितना स्पेस था
ऊपर
सब भर गया है
सच कहूं प्रिये..
मन मर गया है।।
सूर्यकांत