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12 Jan 2024 · 1 min read

इतना क्यों व्यस्त हो तुम

आखिर इतना क्यों व्यस्त हो तुम ,
कि अपने ही जीवन का अस्त हो तुम।

ना मंजिलों का है पता,
ना रास्तों का मोड़ है।

जीवन की हर डगर पर आगे,
निष्प्राण सा जिए जा रहा हूं।

ना धूप की कोई चोट है,
ना छांव का सुकून है।

हर घाव से अनजान हूं,
हर रोशनी से दूर हूं।

न जाने कैसी दौड़ है,
जो मैं किए जा रहा हूं।

न देखिए क्या हाल है,
न देखिए क्या चाल है।

मोहलत नहीं है पल भर की,
हर काम बस किए जा रहा हूं।

व्यस्तता की ओट में न जाने कैसी,
जिंदगी मैं बस जिए जा रहा हूं।
जिए जा रहा हूं।

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