इतना क्या कम था……
इतनी तबाही क्या कम थी,
जो अब आया तूफ़ान है।
इतनी बर्बादी क्या कम थी,
जो आया अब मेहमान है।
इतनी लाचारी क्या कम थी,
जो उजड़ रहा संसार है।
इतनी बेबसी क्या कम थी,
जो डूब रहा मँझदार है।
इतनी मौतें क्या कम थी,
जो अब भी थमने का नाम नहीं।
इतनी मज़बूरी क्या कम थी,
जो अब भी अपनों की दूरी है।
इतनी कंपन क्या कम थी,
जो अब आया ‘एम्फन’ है।
इतने भी दुःख क्या कम थे,
जो अब भी सुख की बात नहीं।
इतने भी दर्द क्या कम थे,
जो अब भी दिन सर्द के हैं।
इतनी उदासी क्या कम थी,
जो अब भी मायूसी छायी है।
इतनी तड़पन क्या कम थी,
जो अब भी धड़कन ग़म में है।
इतनी नम आँखें क्या कम थी,
जो अब आया ये मौसम है।
इतनी फ़रियादें क्या कम थी,
जो अब भी ग़म की यादें हैं।
इतनी प्रार्थना क्या कम थी,
जो अब भी आराधना की बातें हैं।
इतनी बेदर्दी क्या कम थी,
जो अब भी दर्द भरी आहें हैं।
इतना कोरोना क्या कम था,
जो अब भी सबका रोना है।
इतनी तकलीफ़ें क्या कम थी,
जो अब भी महरूम तरीक़े हैं।
इतने हादसे क्या कम थे,
जो अब भी आ रही आहटें हैं।
इतनी बातें क्या कम थी,
जो अब भी काली रातें हैं।
इतने ग़मगीन चेहरे क्या कम थे,
जो अब भी दुःख के मोहरें हैं।
इतनी महामारी क्या कम थी,
जो अब भी सहने की बारी है।
गर यही है ईश्वर की इच्छा,
तो सब कुछ है यही सही।
सोनी सिंह
बोकारो(झारखंड)