इतना आसां नहीं ख़ुदा होना..!
बह्र — 2122 1212 22
आम सी बात है ख़ता होना।
इतना आसां नहीं ख़ुदा होना।
किसको फ़ुरसत है कौन सुनता है,
सीख लो ख़ुद में गुमशुदा.., होना।
सिलसिले दरमियां सलामत हों,
तो जरूरी है फ़ासला होना।
शह्र तुम पर ये जां.., छिड़कता है,
क्या ज़रूरी है बेहया होना।
रब्त ऊला का हो कि सानी में,
नामुक़म्मल है काफ़िया होना।
कर चुके हैं सज़ा मुक़र्रर वो,
जबकि बाक़ी है फैसला होना।
“पंकज शर्मा “परिन्दा”🕊