” इडली आ दोसा “
डॉ लक्ष्मण झा “परिमल ”
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कनि हमरो मन कनि हुनको मन
एहिबेर छुट्टी मे किछु बनए नीक
वस्तु भोजन लेल!
दक्षिण भारतक व्यंजन मे
निर्णय सहज भेल बनए इडली दोसा !
कनिया कनि उडदि- चाऊर चुनि आ फटकि कें
देलखिन भींजे लेल
दोसर दिन घाठी बना रखलनि रवि ला !
साम्भरक इंतजाम भेल ,चटनी कें चटकार भेल !
भिनसर स्नान करि,पूजा आ पाठ करि
लगलनि बनबे ला इडली आ दोसा !
कोमल अपन आंगुर सं ,प्रेमक आतुर सं
बनल नीक ‘इडली दोसा ‘!
खाय मे छलय नीक
परंच हम छलहूँ मौन
कनिया बैचैन छलीह ,मुंहे दिश देखैत छलीह
जे करि कनि प्रशंसा!
परन्तु बदलि लेलहुं अपन मुँह, आकृति आ मनोभाव
जेना बुझि पडए बेकार अछि ‘इडली दोसा !
खेबो केलहुं दू -चारिटा
मन मे सोचलहूँ खायब दुपहरिया मे
अखन खयने सं बुझल जायत नीक छैक !
कनियाक माथ पर बौझिलताक चिन्ह नीक नहि बनल इडली दोसा
तें नहि खेलखिन ,मेहनत सब बेकार गेल
सबटा समेटी कें अगल -बगल बांटी देलनि !
आब दुपहरिया मे भूख लागल ,इडली दोसाक मन जागल
माँगलियनि ‘ लाऊ इडली दोसा ‘!
एतबे मे अगल -बगल वाली महिलागण आबि गेलीह
इडली दोसाक धन्यवाद् देत चलि गेलीह !
आ हम पचताइत रहलहुं कि खाय काल मे प्रसंशा किया न केलहुं !!
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डॉ लक्ष्मण झा “परिमल ”
खडकी
पुणे
महाराष्ट्र