इठलाते गम पता नहीं क्यों मुझे और मेरी जिंदगी को ठेस पहुचाने
इठलाते गम पता नहीं क्यों मुझे और मेरी जिंदगी को ठेस पहुचाने का प्रयास कर रहे थे।
किसी अन्य को दोषी नहीं ठहराया था मैंने
आरोप लगाने के लिए कलेजे में जोर भी क्षीण हो चुका था
मेरी क्रोधाग्नि का शिकार मैं खुद ही थी।
कुछ क्षणों के लिए मैं खुद को कोसती की हे प्रभु मुझे ही अभागिन क्यों बनाया ,
फिर सोचती इसमें विधाता की भी क्या गलती जब मेरी जिजीविषा और भक्ति में ही खोट है।
ऐसे ही स्वयं को गालियां देते देते पता नहीं कब आखें लग गयीं।
सवेरा तो हो गया पर पाठकों मेरे दुखों के निवारण का क्या होगा।