इज्जत
इज्जत
छिटपुट लोगों से भरा रस्ता
और हाथों में लिए एक बस्ता
चलती भोली-सी लड़की
सहसा बिजली सी कड़की
कुछ मनचले खड़े सामने
जबरन दामन लगे थामने
रही वो चीखती,चिल्लाती
इज्जत अपनी पुरजोर बचाती
छली भेड़िये बली,बहरे हुए
वहशीपन से अति भरे हुए
आखिर,कबतक पार वो पाती
हा! बुझ गई दिए की बाती
तनया का तनमन तमाम
कुचले जा रहे सरेआम
संस्कृति को नोचते बाज़
कबतक?मनन करे समाज
-©नवल किशोर सिंह