——-इज्जत घर की अपने हाथ———
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जब बचपन था
तो हर चीज़ से
अन्जान थे
आज बड़े हुये
तो नशे में चूर हैं
सम्झाओ तो
सम्झ्ना चाहते नहीं
कह दो तो
सुनना चाहते नहीं
फ़िर कह देते हो
हम से भूल हो गई
घर की तो सुनते नहीं
बाहर वालो की
बातों में आकर
बन रहे शैतान हो
दुनिया का क्या
उस्को तो तमाशा
चाहिए
ये तो खुद पर है
कि खुद को क्या
चाहिए
वक्त की नजाकत
को सम्झो
अपनी और घर
की इज्जत को सम्झो
दिलो में दीवारों को
बनने से पहले
बचपन की गुजरी
बातों को सम्झो….
अजीत तलवार.