इच्छा
एक बार भगवान ने इंसान बनने की इच्छा जताई
भगवान की आत्मा इंसान बन कर धरती पर आई
धरती पर पहला कदम पड़ते ही दिमाग चकराया
इंसान बने भगवान को कुछ समझ ना आया
इंसानों की इस भीड़ में खो जाने का डर समाया
एक नाम तो होना चाहिए उनकी समझ में आया
सोच विचार कर शिव राम कृष्ण नाम धराया
और अपनी इस पहचान के साथ कदम बढ़ाया
आगे बढ़ा तो मंदिर से घंटे की आवाज़ आ रही थी
जोर जोर से सारी जनता आरती गा रही थी
ढोल मंजीरों का वहां बेहद मच रहा शोर था
आरती और भजनों का भी बेहद शोर था
और करीब से देखने वो मंदिर के अंदर आया
खुद को पत्थर की मूरत में बैठा हुआ पाया
तभी किसी ने धकेलते हुए एक तरफ हटाया
पत्थर की मूरत के सामने श्रद्धा से शीश झुकाया
इंसान बना भगवान मन ही मन मुस्काया
इस पत्थर के सामने असली भगवान धकियाया
हम सब भी तो इंसानों से बैर भाव रखते हैं
इंसानियत भूल कर पत्थर में श्रद्धा रखते हैं
ये सब देख इंसान बने भगवान ने दी सब को दुआ
इंसान इंसान का नही हुआ तो मेरा भी नही हुआ
जिस रास्ते भगवान आये थे वापिस लौट गए
खाली हाथ आये थे खाली हाथ लौट गए
वीर कुमार जैन
04 अगस्त 2021
ये मेरी सौवीं रचना है।