इच्छाओं के भँवर
दोहा गजल
इच्छाओं के हैं भँवर ,डूब रहा इंसान ।
भाग रहा नितप्रति लिये ,अंतर लहूलुहान ।।1
हुई खोखली प्रीत अब ,टूट रहे संबंध ।
भिन्न हुई जग में क्रिया ,दूर हुआ कुछ ज्ञान ।।2
मन की संध्या ढल गई ,धुंध घिरा विश्वास ।
होढ भरी हैं पपड़ियाँ ,रोती अब मुस्कान ।।3
मानवता नित घट रही ,बढ़ा छलावा राज ।
नए स्वरों में स्वार्थ ने ,बदले विधिवत गान ।।4
दीर्घ तृषा मंदिर भरे ,चंचरीक अवतार ।
तेज धार शर से करें ,आकंक्षा संधान ।।5
उज्ज्वल स्वरूप में भरा,गहरा अंधा कूप ।
भाव विखंडित धर हृदय ,पंक लिए मति म्लान ।।6
रचे चक्र दुश्चक्र हैं ,घिरे सभी बहुरंग ।
नाच रही प्रतिपल तृषा ,धरे पाद अवसान ।।7
डा. सुनीता सिंह ‘सुधा’शोहरत
स्वरचित सृजन
वाराणसी
11/12/2021