इच्छाओं का घर
इच्छाओं का अपना कोई
घर कहाँ होता है।
जब तक इच्छा हकीकत में न बदले
उसका वजूद कहाँ होता है।
जब तक तुम मेहनत न करो
मंजील तुम्हें कहाँ मिलता है।
सागर के किनारे बैठ जाने से
मोती कहाँ हमें मिलता है।
मोती लेना है अगर तुम्हें
सागर के तह तक जाना पड़ता है।
जब तक मोती न मिले
तब तक डुबकी लगाना पड़ता है।
चाहे जितना भी मुशिकल हो
कदम आगे बढ़ाना पड़ता है।
सिर्फ मन में इच्छा होने से
कहाँ मंजिल मिल पाता है।
जब तक इच्छा सफलता मे न बदले
कहाँ उसे घर मिल पाता है।
~अनामिका