इच्छाओं का गला घोंटना
इच्छाओं का गला घोंटना
इच्छाओं को मारकर जो जिया,वो खुदखुशी जैसा दर्द लिया।
हर ख्वाब को राख बना डाला,दिल का हर रिश्ता तोड़ दिया।
अरमानों की चिता सजाई,मन की बातों को समझ न पाई।
सपनों के पंख कतर दिए,जीने की चाहत छीनते गए।
कभी अपने थे, कभी पराए,सबके लिए खुद को भुलाए।
अपनी पहचान मिटाई यूं,जैसे धूल हवा में छाई यूं।
दिल के घाव गहरे होते गए,फिर भी होंठ हंसते दिखते गए।
जिनसे सहारा मांग रहे थे,वो ही जख्मों को बढ़ाते गए।
यह जिंदगी है या सजा कोई,जहां हर खुशी को त्यागे कोई।
सांसें तो चल रही हैं मगर,जीने की वजह को त्यागे कोई।
खुद से लड़कर हर दिन जिया,खुद को ही हर दिन काट लिया।
इच्छाओं का गला घोंटना,जैसे जीते जी मर जाना।
है वक्त से गुजारिश मेरी,दे इंसान को उसकी देरी।
इच्छाओं को न यूं कुचल सके,हर दिल को जीने का हक मिले।