इख्लास
इख्लास दिल न हो तो कहाँ गुजारे है
इतिबारे न रहे मन तो बँटबारे है
नदियाँ की धार बन बहो हिरदय तल में
टकराओ उनसे जो बने किनारे है
वानी पर जब तेरी विराम लगा रहा
बोल नैन इतने लगे क्यों करारे है
यारा तू भा गया आज इतना मुझको
इक तू ही बस सारे जहाँ हमारे है
मुग्ध मोहिनी सुरा सुरा छलकाती जब
प्रेम पन्थ के सारे हुए शिकारे है
हमको तो अब तलक पता न लगा कि पिया
किस रास्ते हम उनको दिले उतारे है
इख्लास –प्रेम