इक रोज़..
चढ़ता हुआ समंदर भी उतर जायेगा इक रोज़!
और अपना मुकद्दर भी सँवर जायेगा इक रोज़!
कुछ भी न कहा जुबां से जब घर जला हमारा!
अपना ख़ामोश रहना असर लायेगा इक रोज़!
छोड़ कर कहाँ जायेगा अब खुद मेरा ही साया!
तन्हा रहा तो ख़ुदा से भी डर जायेगा इक रोज़!
बार-बार ना सँवारो अब तुम खुद के गुरूर को!
ये आईना भी टूट के बिखर जायेगा इक रोज़!
कभी जब देखने का शऊर आ जायेगा तुझको!
हर सिम्त बस ख़ुदा ही नज़र आयेगा इक रोज़!
✒ Anoop S