इक राग नया सा लिखता हूँ
मैं प्रखर ज्योति से,नवल सृजन का,राग नया सा लिखता हूँ,
मैं साहित्य के गीतों में, अनुराग नया सा लिखता हूँ,
1) देता हूँ आज में आव्हान, भारत के सभी मुनिषों को,
प्राचीन काल से जो सीखा है, ज्ञान भरे उन शीशों को,
प्राचीन काल की धर्म कुरीति को देता हूँ चोट प्रबल,
उन ज्ञानी के उपदेशों को जो बना रहे भारत निर्बल,
इस धर्म कुरीति की बेला में भाग नया सा लिखता हूँ,
मैं प्रखर ज्योति से नवल सृजन…………..
2) मैं एक कुरीति दिखा, हिन्दू ने पाली है जिसको,
शिवलिंग पर दुग्ध चढ़ाएं रहे, है जिसकी न ख्वाहिश उसको,
दिन रात मरें भूखे परिजन, वो दुग्ध धार ना बंद करे,
भागवान की है क्या ये ख्वाहिश, भूखी उसकी संतान मरे,
मैं शोक भरी इस नीति पर, अनुराग नया सा लिखता हूँ,
मैं प्रखर ज्योति से नवल सृजन…………..
3) एक और कुरीति बता रहा, मुस्लिम भाइयों की देन है जो,
चादर कब्रों पर चढ़ा रहे, व्यक्ति मरते हैं कपड़ों को,
वे बिन वस्त्रों के झेल रहे, सर्दी, गर्मी,बरसात पङे,
अल्लाह कभी क्या चाहेगा, बिन कपड़ों के संतान मरे,
मैं दर्द भरी इस बेला में, इक त्याग नया सा लिखता हूँ,
मैं प्रखर ज्योति से नवल सृजन……………
4) एक और अनीति दिखा रहा, ईसाई बंधुओं ने दी है,
ईश्वर घर दीप जलाए रहे और खंडित मानवता की है,
है विश्व पड़ा अंधेरे में, ईश्वर घर दीप जलाए रहे,
क्या कभी ये जीजस चाहेगा, अँधेरे को आवाम सहे,
अंधकार भरी इस रात्रि में, अध्याय नया सा लिखता हूँ,
मैं प्रखर ज्योति से नवल सृजन…………….
5) न दुग्ध कभी शिव जी चाहे, न अल्लाह चाहे चादर को,
न जीजस केंडल को चाहे, वे देख रहे जन संकट को,
वाणी न कपित हुई मेरी, मैं सत्य सदा ही गाऊँगा,
इस पूरे भारतवर्ष में मैं, मानवता धर्म ही चाहूँगा,
मैं आज बनी इस नीति पर, इक भाव नया सा लिखता हूँ,
मैं प्रखर ज्योति से नवल सृजन……………
6) उस दुग्ध धार को बंद करो, भूखे परिजन का पेट भरो,
तुम बंद करो चादर नीति, नंगे तन पर तुम वस्त्र धरो,
तुम एक जला केंडल आओ, रोशन गरीब का घर होगा,
होंगे 100 पाप क्षमा तेरे और खुश वो ख़ुदा रहबर होगा,
मैं मानवता की ज्वाला बन, इक आग नई सी लिखता हूँ
मैं प्रखर ज्योति से नवल सृजन……………
जय हिंद – जय भारत