#इक दूजे की टेक
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★ #इक दूजे की टेक ★
◆ प्रिये तुम्हारे अधरों पर
स्वीकार तो है मुस्कान नहीं
स्वच्छंद तुम्हारे विचरण में
यह बंधन तो व्यवधान नहीं
प्रिये तुम्हारे अधरों पर . . .
● प्रियतम सुहानी भोर में
तुमसे अब मैं क्या कहूं
भली करेंगे राम जी
भली है कि मैं चुप रहूं
प्रियतम सुहानी भोर में . . .
◆ एक मिलेगा एक से
फिर भी रहेंगे एक
हृदय में रक्त रक्त हृदय से
इक दूजे की टेक
एक मिलेगा एक से . . .
● प्राणसखा मृदंग मत छेड़ो
छेड़ो मुरली की तान
कल परसों की मत पूछो
बढ़े तुम्हारा मान
प्राणसखा मृदंग मत छेड़ो . . .
◆ सौगंध प्रिये तुम्हें मात की
कुछ ऐसा मिलाओ मेल
प्रकाश रहे सहेज लें
दीपक बाती और तेल
सौगंध प्रिये तुम्हें मात की . . .
● तन दो इक हम प्राण हैं
सीधी-सच्ची तुम्हारी बात
उसके आगे की सोचूं
दिन में दीखे रात
तन दो इक हम प्राण हैं . . .
◆ दो से होंगे तीन हम
इसका मुझे है भान
दायित्व संसार चलाने का
परमपिता का है वरदान
दो से होंगे तीन हम . . .
● कथनी तुम्हारी अटल है
ज्यों लछमन की रेख
राजा के बोल नित नये
जीवन रेखा में मेख
कथनी तुम्हारी अटल है . . .
◆ प्रिये तुम्हारे अधरों पर
अक्षर के धर कमल देंगे
शपथ भावी संतान की
कल हम राजा बदल देंगे
प्रिये तुम्हारे अधरों पर . . .
● इक आता इक जा रहा
बदलें केवल नाम
साजन जीना तब जियें
डोरी अपने हाथ में थाम
रे साजन ! डोरी हाथ में थाम . . . !
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~ लंबी दासता का एक दुष्परिणाम यह हुआ कि आपसी संवाद के समय हम अपनी मातृभाषा राष्ट्रभाषा को ही कलुषित करने लगे। अरबी फारसी अंग्रेज़ी शब्दों की सहायता लेना हमारी विवशता व अज्ञानता का परिचायक है।
~ यहांँ एक युगलगीत प्रस्तुत है जो इस कलंक से अछूता है।
~ आपके मन को छुए तो आशीष कहें।
#वेदप्रकाश लाम्बा
यमुनानगर (हरियाणा)
९४६६०-१७३१२