इक झलक हमको दिखाओ तुम जरा
गजल
बह्र-2122 2122 212
काफिया-आओ रदीफ़-तुम जरा
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रुख से पर्दा तो हटाओ तुम जरा
इक झलक हमको दिखाओ तुम जरा।
रौशनी में जी मेरा लगता नहीं
घर अँधेरों के दिखाओ तुम जरा।
जख्म मेरे दिल के अब भी हैं हरे
हाल अपना तो सुनाओ तुम जरा।
जान मेरे जिस्म में आ जायेगी
एक पल को मुस्कुराओ तुम जरा।
रोज घर जाने की तुमको देर है
यूँ कभी फुरसत में आओ तुम जरा।
एक मुद्दत हो गई तुमको मिले
अब तो अपने घर बुलाओ तुम जरा।
डॉ. दिनेश चन्द्र भट्ट