इक गुलाब दे जाओ,
खार बहुत हुए अब इक गुलाब दे जाओ,
ताउम्र की वफाओं का हिसाब दे जाओ,
तपते सहरा सी खुश्क हुई पड़ी हैं आँखें,
इन्हें अश्कों का मौसमी सैलाब दे जाओ,
कुछ भर चले हैं मेरे पुराने ज़ख्म भी,
दिल को चंद ताज़े आज़ाब दे जाओ,
खामोशियों ने कुछ फीकी सी कर दी है,
जुबां को शदीद तल्ख़ तेज़ाब दे जाओ,
‘दक्ष’ अपने होशो-हवास में आने लगा है,
मदहोश करने को थोड़ी शराब दे जाओ,
विकास शर्मा ‘दक्ष’