“इक ग़ज़ल इश्क़ के नाम करता हूँ”
इक ग़ज़ल इश्क़ के नाम करता हूँ
आज किस्सा ये तमाम करता हूँ
नफ़रतो के बाज़ार में जाकर
उल्फत को आज नीलाम करता हूँ
मेरी गली में चर्चे है मेरे इश्क़ के
जागकर रातभर कलाम पड़ता हूँ
आ जाओ मेरे पहलु में मेरे दिलबर
मैं कोशिश तुझे पाने की नाकाम करता हूँ
याद करेगा ज़माना मेरे इश्क़ को राणाजी
मैं इश्क़ को अब आखिरी सलाम करता हूँ
©ठाकुर प्रतापसिंह “राणाजी”
सनावद(मध्यप्रदेश)