इक कतरा वफ़ा
इक बद्दुआ के बदले मिली खूब दुआएं थी।
बुझ न पाया चिराग जिसके साथ हवाएं थी।।
जिस पर खेलें फल खाए वो शज़र सूखा क्यों।
किसने ये जड़ काटी किसकी ये खताएं थी।।
कौन टूटा और कौन बिखरा किसे मालूम।
हर तरफ कोहराम था हर तरफ सदाएं थी।।
दीवारें पूछती हैं वो शख्स क्यों न आया।
रूह से जुड़ा था जिसकी दिलकश अदाएं थी।।
दिल के इक कोने में मुहब्बत का ‘सागर’ है।
अब तक जो देखा बस इक कतरा वफाएं थी।।
सागार