इक उम्मीद
मैं जब तुमसे मिला था पहली दफा तो इक पत्थर की शिला समान था
ना कोई रूप ना कोई आकार
तुम्हारी चाहत से मैं किसी भी रूप में ढल सकता था
तुम्हारी इक मुस्कान से जब पहली मुलाकात का मेरा वो पल हसीन बन गया था तो अगर तुम जीवन भर साथ होते तो
मेरा अस्तित्व और जीवन का हर पल संवरता ।
तुम्हारे पास अनगिनत संभावनाएं थीं मुझे तरासने को..
शिव प्रताप लोधी