इकरार ए मुहोबत
यूँ तो गुजरने को गुज़र जाती है ज़िदगी,
मगर वोह बात कहाँ जो तेरे पहलु में है।
दुनिया की मुहोबत बेशक हो साथ मगर,
मगर सच्चा इकरार तो तेरे ही साथ है।
दौलत हो इज्ज़त हो या बेशकीमत खजाने,
तेरे सामने मगर यह सब फ़िज़ूल ,बेनूर है।
वैसे तो वादे-सबा आती है लेकर महक हर सु,
मगर तेरे दामन की खुशबु की बात कुछ और है।
मेरे महबूब ! मुझे रहती है सदा आरजू तेरी,
मेरी हसरतो की दुनिया में तो सिर्फ तू ही तू है।