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17 May 2021 · 1 min read

इंसाफ़

चलो अब महशर में ही मिलते हैं
देखें तो हिसाब ज़्यादा तुम्हारी अज़ीयतों का है की
मेरी वफाओं का ,
देख लेना कहीं नतीजा ये न निकले
उस वक़्त तुम मेरे गुनाही बनो
और तेरे इंसाफ़ के सारे हक़ मेरे हो ,
कह तो दिया तुमने मुझे की मैं ग़ैर हूँ
लेकिन याद रखना आख़िर ज़ात उस खुदा की है
कहा जाता है उसके घर में देर है मगर कोई अंधेर नहीं है |

द्वारा – नेहा ‘आज़ाद’

* महशर का मतलब क़यामत का दिन
* अज़ीयत मतलब यातना
* ज़ात मतलब स्वरुप / अस्तित्व
* गुनाही मतलब गुनहगार

Language: Hindi
2 Likes · 254 Views
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