इंसाफ़
चलो अब महशर में ही मिलते हैं
देखें तो हिसाब ज़्यादा तुम्हारी अज़ीयतों का है की
मेरी वफाओं का ,
देख लेना कहीं नतीजा ये न निकले
उस वक़्त तुम मेरे गुनाही बनो
और तेरे इंसाफ़ के सारे हक़ मेरे हो ,
कह तो दिया तुमने मुझे की मैं ग़ैर हूँ
लेकिन याद रखना आख़िर ज़ात उस खुदा की है
कहा जाता है उसके घर में देर है मगर कोई अंधेर नहीं है |
द्वारा – नेहा ‘आज़ाद’
* महशर का मतलब क़यामत का दिन
* अज़ीयत मतलब यातना
* ज़ात मतलब स्वरुप / अस्तित्व
* गुनाही मतलब गुनहगार