~ इंसाफ की दास्तां ~
~ इंसाफ की दास्तां ~
सुन्दर सा परिवार एक था, मात-पिता दोउ भाई।
एक जेठानी औ देवरानी, प्यारी बहन सी आई।।
कोख सुनी रही बड़ी की , लाखो किया उपाय।
तब तक छोटी देवरानी ने, दी अच्छी खबर सुनाय।।
नौ मास पश्चात आँगन में, एक चिड़िया है आयी।
सुन्दर, सलोनी गुड़िया सबके, हृदय में जगह बनाई।।
बड़ी व छोटी दोनों माएँ, करती उसको लाड़।
सास कहे प्यारी पोती को, देना नही बिगाड़।।
पिता व काका झट से करते, उसकी ख्वाहिश पूरी।
धन्य धान्य से सम्पन्न परिवार था, कोई न थी मजबूरी।।
रोज सुबह विद्यालय जाती, थी वो बड़ी होनहार।
इतनी प्यारी गुड़िया थी वो, सभी लुटाते प्यार।।
बड़ी हो गयी बिटिया रानी, किया मैट्रिक पास।
खूब मिठाई बांटा सबने, किया हर्ष-उल्लास।।
एक दिवस ऐसा आया, बिटिया लौटी ना घर।
पापा, काका चले स्कूल, लेने उसकी खबर।।
विद्यालय से पता चला, वो समय से घर को लौटी।
बीच रास्ते कहाँ गई वो गुड़िया अभी थी छोटी।।
घबराकर फिर घरवालों ने, पुलिस में रपट लिखाई।
प्यारी सी थी बिटिया मेरी, अब तक घर ना आई ।।
दोनों माँएं मूर्छित होती, पूछती एक सवाल।
कोई बता दे कहाँ हैं मेरी, चिड़िया पड़ी बेहाल।।
24 घण्टे बाद पुलिस ने, एक बुरी खबर सुनाई।
बैग, दुपट्टा और था जूता, झाड़ी में एक लाश बताई।।
फटा कलेजा दौड़े सब, बिटिया की पहचान बताई।
खून से लथपथ पड़ी थी गुड़िया, प्राण नही थे भाई।।
तोड़ दिए किसी राक्षस ने, उस चिड़िया के पंख।
माँ के प्राण पखेरू उड़ गए, बिटिया के ही संग।।
दो-दो चिताएं साथ जली,आत्मा रही चीत्कार।
कोई न्याय दिला दे हमको, पापी पे कर वार।।
बड़ी माँ के आँसू सूखे, सबने कहा रुलाओ।
पगली ना हो जाये ये, कोई उपाय चलाओ।।
मासूम सी प्यारी बिटिया का, जिसने किया गैंग रेप।
पुलिस गिरफ्त में दो पकड़ाए, आसिफ और जोसेफ।।
सुनकर खबर तभी बड़ी माँ, दौड़ी भागी थाने।
किसी को भी समझ न आए, क्या गई है अब लाने।।
थाने में हथकड़ी में दिखे, वो पापी बलात्कारी।
जिसने तोड़ा पंख चिड़ी का, उसकी कोख उजाड़ी।।
बोली सुन लो विनती हमरी, भईया थानेदार।
एक बार मिलना चाहूँ मैं, करियो ये उपकार।।
खड़ी सामने हुई शेरनी, घायल हृदय हुई विछिप्त।
अंतर्द्वंद्व चल रहा मन में, कैसे करे इसे संतृप्त।।
तभी कमर से एक रिवॉल्वर, उसने लिया निकाल।
धांय-धांय दो गोली दागी, दानव हुए निढाल।।
बोली साहेब थानेदार, किया आज इंसाफ।
तेरे कानून की झूठी दलीलें, कर देती इन्हें माफ।।
ऐसे दरिन्दों की न हो, एक भी जब सुनवाई।
तुंरत सज़ा-ए-मौत-मौत मिले, तब जीतेगी सच्चाई।।
मेरी सुनी कोख कर दिया, चिड़िया थी आँगन की।
प्यारी सी देवरानी छूटी, थी वो मेरी बहन सी।।
दो माँओं का बदला था ये, आज कर दिया पूरा।
हाथ मेरे हथकड़ी लगाओ, करो अपना काम अधूरा।।
मैं पगली फाँसी चढ़ जाऊं, कतई अफसोस न होगा।
लिया प्रतिकार बलात्कारी से, सुन लो बाबू दरोगा।।
@स्वरचित व मौलिक
शालिनी राय ‘डिम्पल’🖋️