क्या उसे इंसाफ मिला
वो सर्द मौसम
वो सर्द रात
अमानवीय दुष्कृत्य
घात-प्रतिघात
उद्वेलित समग्र राष्ट्र ।
मां की अकथ व्यथा
पिता का संताप
लम्बी लड़ाई
जीवन की मृत्यु के साथ
समवेत आक्रोश समवेत हाथ ।
हार जीवन की
हार आशान्वित मन की
हार इन्सानियत की
हार जन-जन की ।
फिर एक लम्बी लड़ाई
इंसाफ़ की जद्दोजहद
अपनी एक अलग
कानून की हद
न्याय की दहलीज से
बार-बार लौटती पथराई आंखें
इंसाफ की उम्मीद ।
आखिर देर सवेर
मिला इंसाफ ।
इंसाफ मां को
इंसाफ पिता को
इंसाफ हर पीड़ित मन को
इंसाफ हर जन को
लेकिन पीड़ा की पराकाष्ठा को
सहा जिसने
भोगा जिसने
दुष्कृत्य का अमानवीय भार लिए
जो विदा हो गई
सदा के लिए
क्या उसे मिल पाया
इंसाफ का एक अदद हिस्सा ।
अशोक सोनी
भिलाई