इंसाफ कहां मिलेगा?
बाजार में घूमती हुई दो महिला नजर आती है दोनों महिलाएं वेशभूषा से बहुत ही गरीब एवं लाचार घर की दिख रही है। जिसमें से एक का नाम ‘तगड़ी’ है तो दूसरे का नाम ‘बगड़ी’ है। यह दोनों सौतन है, जो मुस्मात है। इन दोनों के गर में “इंसाफ कहां मिलेगा” लिखा हुआ एक बैनर लटका हुआ है। यह दोनों औरत घूमते घूमते एक दुकानदार के पास जा पहुंचती है। दुकानदार के पास पहुंचने के बाद उसमें से एक औरत एक लेटर दुकानदार को देती है। दुकानदार उस लेटर को पढ़ने के बाद एक छोटी सी कागज पर ‘पंच’ शब्द लिख करके दे देता है।
फिर वहां से दोनों सौतन चल देती है पंच की ओर। रास्ते में एक-दो व्यक्ति से पूछते हुए पंच के घर तक पहुंच जाती हैं। पंच के घर पहुंचने के बाद पंच को भी उसी लेटर को दे देती है, फिर पंच उस लेटर को पढ़ने के बाद एक छोटी सी पेपर पर “अगले दिन आना” लिख करके दे देता है। वहां से दोनों सौतन अपने घर की ओर चल देती है। तभी इधर जो पंच था वह उस मुद्दई के पास पहुंच जाता है, जिस मुद्दई का नाम उस कागज में विकलांग साह है और उससे सारी बातें बताता है। तभी वह मुद्दई उसको ₹500 निकाल कर के पंच साहब को दे देता है, अब वहां से पंच उठकर अपने घर चला जाता है। फिर अगले दिन जब वह दोनों सौतन पंच के पास पहुंचती है तो वह पंच एक छोटी सी कागज पर ‘सरपंच’ लिख करके दे देता है।
फिर वहां से दोनों महिला उस पेपर को लेकर के सरपंच के घर की ओर चल देती है। दोनों महिलाएं सरपंच के घर जा पहुंचती है। फिर वही सरपंच के पास पहुंचने के बाद वह जो लेटर ली थी उस लेटर को दे देती है। फिर उस लेटर को सरपंच पढ़ता है और पढ़ने के बाद एक छोटी सी कागज पर “कल आना” लिख करके दे देता है। फिर वह दोनों महिलाएं अपने घर को चल जाती है। तभी इधर सरपंच साहब उस मुद्दई के पास पहुंच जाते हैं जिस मुद्दई का नाम उस लेटर में लिखा रहता है। फिर वह मुद्दई सरपंच साहब को 2000 का नोट थमा देता है, तब सरपंच साहब अपने घर की ओर चले जाते हैं। अगले दिन जब फिर दोनों महिला सरपंच साहब के पास पहुंचती है तो सरपंच साहब एक छोटी सी पेपर पर ‘थाना’ लिख कर के दे देते है।
फिर वह दोनों महिलाएं थाना की ओर चल पड़ती है और थाना में पहुंचकर थानेदार साहब को वह लेटर दे देती है। अब थाने में उपस्थित थानेदार साहब उस आवेदन को पढ़ने के बाद रख लेते हैं और एक फोटो कॉपी उसको दे देते हैं और फिर थानेदार साहब एक छोटी सी कागज पर “कल इंक्वायरी में आएंगे” लिख करके देते हैं। फिर दोनों महिलाएं अपने घर को चले जाती है।
अगले दिन थानेदार साहब इंक्वायरी में आते हैं और आवेदन में दिए गए विषय के अनुसार इंक्वायरी करते हैं और फिर मुद्दई- मुद्दालय दोनों को थाना पर बुलाते हैं। इधर इंक्वायरी के बाद जो मुद्दई है वह अपना सोर्स पैरवी लगाकर थानेदार साहब को पचास हजार रुपए भेजवा देता है।
फिर अगले दिन थानेदार साहब के अनुसार मुद्दई और मुद्दालय दोनों थाने पर पहुंच जाते हैं जिसमें से दोनों सौतन भी पहुंच जाती है। थाना पर पहुंचने के बाद थानेदार साहब दोनों मुस्मात सौतन को डराते धमकाते हुए और थाना में डालने की धमकी देते हुए कहते हैं कि
!!पहला दृश्य!!
थानेदार साहब – तुम लोग बेकार की इधर-उधर भटक रही हो। घर जाकर के चुपचाप बैठ जाओ वरना इसके साथ झगड़ा करोगी और जमीन जोतने से रोकोगी तो हम दोनों को जेल में डाल देंगे।
इस तरह से दोनों मुस्मात महिला डर जाती है और फिर वह उदास मन से थाना से बाहर निकलती है। तो सामने में एक पान का दुकान दिखता है उस पान की दुकान पर वही बैनर जिस पर लिखा है “इंसाफ कहां मिलेगा” लेकर पहुंच जाती है। पहुंचने के बाद एक लेटर उस पान वाले को देती है। फिर वह पानवाला उस लेटर को पढ़ने के बाद एक छोटी सी पेपर पर ‘वकील’ लिख करके दे देता है।
फिर वह दोनों मुस्मात सौतन पता करते-करते एक वकील साहब के पास पहुंच जाती है और उन्हें भी वही लेटर देती है जो उनके हाथ में लेटर है। फिर वकील साहब उस लेटर को पढ़ते हैं और लेटर को पढ़ने के बाद एक एफ आई आर कोर्ट में दर्ज करा देते हैं। इस तरह से दो-चार माह केस लड़ने के बाद भी कुछ इंसाफ नहीं मिलता है, तो दोनों महिला फिर से वकील साहब के पास पहुंचती है तो वकील साहब एक पेपर पर “एसपी जनता दरबार” लिख करके देते हैं।
अब इधर दोनों सौतन जिला पुलिस अधीक्षक के जनता दरबार में पहुंचती है तो वहां पर एक महिला को प्रवेश मिलती है और एक बाहर रहना पड़ता है। इस तरह फिर वह एक महिला जो अंदर जाती है, वह वही लेटर एसपी साहब को देती है। अब एसपी साहब उस लेटर को पढ़ते हैं और पढ़ने के बाद उस मुस्मात महिला से पूरी कहानी पूछते हैं। इस पर वह मुस्मात महिला जिनका नाम तगड़ी है, वह पूरी कहानी एसपी साहब को बताने लगती है।
!!दूसरा दृश्य!!
(अब यहां से कहानी पिछले दृश्य में चला जाता है जहां पर तगड़ी और बगड़ी दोनों का पति हारन साह की तबीयत खराब रहती है और वे बेड पर सोए हुए हैं वहीं पर बगड़ी-तगड़ी के साथ उनका होशियार पटिदार ‘विकलांग’ साह है।)
तगड़ी – बबुआ देखना इनकर इलाज खातिर डॉक्टर गोरखपुर ले जाएके कहतानी।
बगड़ी – कहत रनीहसन की उत्तरवारी वाला दु कठा जवन जमीनिया बाऽ ओकरा के बेच के इनकर इलाज करा लियाईत।
तगड़ी – हऽ बबुआ खेतवा बेचके इहाके इलाज करा लियाईत। काहेकी इहे ना रहेम तऽ हमनी के बेरा पार के लगाई। भगवान तऽ हमनी के कोख से एको बेटो ना देहलन।
विकलांग साह – अइसन बात काहे कहतारी कनियों। भगवान तहनी के बेटा ना दिहलन तऽ हम तोर बेटा जइसन बानीनु। टेंशन मत लसन, कवनो दिक्कत ना होई।
(कुछ देर बाद)
विकलांग साह – ठीक बाऽ, दु-तीन दिन में गाहाक उपरा के खेतवा बेच दियाला तब गोरखपुर चलल जाला।
!!तीसरा दृश्य!!
(जमीन बिक्री के लिए कागज तैयार हो गया है और यह तीनों जमीन बेचने के लिए कलेक्ट्रीएड पहुंच गए हैं। दोनों सौतन अपने पति के पास में बैठी हुई है तभी विकलांग आता है और कहता है।)
विकलांग साह – कनिया जा सऽ तले नास्ता कोवावसऽ, अभी समय लागी, तले कागज-ओगज भराता।
(इतने में दोनों सौतन बेचारी नाश्ता करने के लिए चली जाती है तब तक कागज मंगाकर अंगूठे का निशान लगवा लिया जाता है। थोड़ी देर बाद जब दोनों सौतन आती है।)
तगड़ी – का भईल बाबुओं…
विकलांग साह – लिखा गईल कनियों….. चले के अब घरे भियान लेके चलल जाई गोरखपुर।
(कल हो करके वे लोग गोरखपुर ले जाते हैं और चार-पांच दिन इलाज कराने के बाद घर वापस आ जाते हैं। घर आने के 2 दिन बाद हारन साह की मृत्यु हो जाती है। फिर क्रिया कर्म एवं दाह संस्कार समाप्त होने के 15 दिन बाद विकलांग साह जमीन पर कब्जा कर लेता है। यह गलत तरीके से 4 कट्ठा जमीन उसी समय लिखवा लेता है जिस समय दूसरे ग्राहकों 2 कट्ठा जमीन बेचा गया था।)
अब इधर एसपी साहब को पूरी कहानी बताते हुए कहानी के अंतिम पड़ाव में पहुंचती है तब तक बाहर से खबर आती है कि जो बाहर में बैठी हुई उनकी सौतन जो ‘बगड़ी’ थी उनकी मौत हो गई। इस पर वह मुस्मात ‘तगड़ी’ चिल्लाते बिलखते बाहर निकलती है और अपने सौतन की शरीर से लिपट कर रोने लगती है और रोते-रोते इंसाफ की मांग करते हुए वह भी दम तोड़ देती है और इधर एसपी साहब और उनकी पूरी पुलिस प्रशासन देखते ही देखते रह जाती हैं।
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