इंसान
रंजिशों नफ़रतों के दाग़ लिए
सूनी आँखों में टूटे ख़्वाब लिए
देखो कराहता है हिंद का दिल
यकजहती की मुर्दा लाश लिए
एक तो फैला है क़हर क़ुदरत का
और जारी है जंग मज़हब की
लाश उठनी है चाहे कैसे भी
खून आखिर बहेगा इंसां का
क्यों समझते नहीं हो तुम आखिर
जान हर एक की क़ीमती है यहाँ
क्यों लड़े जंग मज़हबों की हम
क्यों न बन जाएं सिर्फ इंसां हम
आओ मिल जुल के ऐसी ढाल बने
जिससे हिन्द अपना बेमिसाल बने
जिससे हिन्द अपना बेमिसाल बने