इंसान बनाना कभी
जिस्म का खून अपने बढ़ाना कभी
आप भी दिल हमारा दुखाना कभी
आप हिन्दू ओ मुस्लिम बना ही चुके
अब ज़माने को’ इंसान बनाना कभी
देश अपने अगर, आए’ जब लौटकर
फिर न सोने की’ चिड़िया उड़ाना कभी
आस रखना ज़रा, लौटकर आऊंगा
तुम न सिंदूर अपना मिटाना कभी
क़त्ल रिश्तो का होने से बच जाएगा
जीत जाना कभी, हार जाना कभी
तुम नहीं हो तो हैं सब बहारें उदास
अब यह मौसम न होगा सुहाना कभी
दौलतें खूब ‘अरशद’ कमा ही चुके
अब दुआएं किसी की कमाना कभी