इंसान को इंसान बनाने की ज़िद है मेरी
इंसान को इंसान बनाने की ज़िद है मेरी
अपनी ही रूह को सताने की ज़िद है मेरी
चलते – चलते मर ही क्यूँ ना जाऊँ अब मैं
अपनी ज़िंदगी दूजे के नाम कर जाने की ज़िद है मेरी
– नितिन धामा