इंसान कबसे खाओगे? (मांसाहार पर दो टूक -भाग 1)
अपनी जीभ के स्वाद के लिए मूक और निरीह जानवरों को जो अपना निवाला बनाते हैं, मैं पूछता हूँ, इंसानों की बारी कब आ रही है? एक दर्द से कराहते हुए जानवर की गर्दन पर आरी चलाते समय तुम्हे तनिक भी दर्द नही होता है, होगा कैसे , सवाल तुम्हारी जीभ का हैं। मांस भले ही गाय का हो या किसी अन्य जीव का, मांस तो मांस हैं। मेरा मानना हैं कि मात्र गाय के मांस पर ही सियासत क्यों? गाय को तो माता का वास्ता दे दिया लेकिन बाकि अन्य जीवों की सुध कोन लेगा? क्या उनके लिए कोई कानून नहीं? क्या इंसानों की तरह उन्हें दर्द नही होता? लेकिन मनुष्य ने अब तक आदिम सभ्यता का पीछा नही छोड़ा हैं। मांस खाना आदिमानव की मज़बूरी थी। लेकिन अब भी इसे स्वाद के साथ जोड़ा जाता हैं। मांसाहार इंसान को बर्बर बनाता हैं। जंगली बनाता हैं। इसे समझना चाहिए। मांसाहारी कभी शाकाहारीयों को जीतने नहीं देंगे , क्योंकि संख्या में वे शाकाहारियों से बहुत ज्यादा है, तो भी सच बदलता नहीं हैं। मैं कहता हूँ मांस खाना इसलिए मत छोड़िये की आपके शरीर के लिए यह सही नही है, बल्कि इसलिए छोड़िये की इससे किसी मूक प्राणी की निर्मम हत्या जुडी होती हैं। भला जानवरों को मौत के घाट उतारना ये भी कोई धंधा हैं, दुनिया में और लोग भी कमा रहे हैं । क्या मासूम जानवरों की हत्या भी कोई व्यवसाय हुआ! जीभ के लिए इंसान किस हद तक गुज़र रहा है, देखकर और सुनकर कलेजा मुह को आता हैं। ऐसे में इन वहशियों से दया के नाम पर केवल प्रार्थना की जा सकती हैं कि वे ऐसा ना करे। खून का ऐसा सैलाब न बहाये। अगर ये ना रुका तो जल्द ही वो दिन दूर नही जब इंसान, इंसान को अपना ग्रास बनायेगा ये सच हैं। विश्व में कुछ जगहों पर ये हो भी रहा है। जो बेहद निंदनीय हैं। भगवान के नाम पर ना सही, नैतिकता और अहिंसा के नाम से ही सही, हमें मांसाहार बन्द करना चाहिए। आज और अभी से।
इस विषय पर मैं आगे भी बेबाक लिखता रहूँगा । मेरा अगला लेख जरूर पढ़े।
-साभार
©नीरज चौहान