इंसानियत
किस कदर इंसानियत बहसी दरिंदा बन गई।
आदमी की आज देखो आदमी से ठन गई।।
मौत का ये खेल अब तो एक तमाशा हो गया।
आज रिश्तों की ये चादर फिर लहू में सन गई।।
किस कदर इंसानियत बहसी दरिंदा बन गई।
आदमी की आज देखो आदमी से ठन गई।।
मौत का ये खेल अब तो एक तमाशा हो गया।
आज रिश्तों की ये चादर फिर लहू में सन गई।।