इंसानियत
इंसानियत
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होगा ताकतवर बहुत वो, पर भगवान तो नही है।
जमीर खरीद ले किसी का, इतना धनवान तो नही है।
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दम तोड़ दिया इंसानियत ने, चौराहे पर चीखते चीखते
लगता तो ये शहर है, कोई वीरान तो नही है।
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ना होगा कभी भी जुल्म, अब किसी मजलूम पर
हुकूमत का अब तक ऐसा, कोई फरमान तो नही है।
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अमनों चैन की बस बारिशें, सदा होती रहे यहाँ
इससे बढ़कर खुदा मेरा, कोई अरमान तो नही है।
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बनाकर भेजा है उसने तो, इंसान ही सभी को
देख लो कहीं कोई हिंदू, या मुसलमान तो नही है।
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करेगा हिसाब ‘सुरेश’ वो, कयामत के दिन सभी का
आखिर खुदा है वो भी, कोई नादान तो नही है।