इंसानियत,
मैंने कितने चरागों को आफताब किया,
रहा दुनिया के साथ और लाजबाब किया,
हाथ बढेगा सदा जगत कि रहनुमाई में,
मिट्टी के हाथों को मैंने तो किताब किया,
मैंने कितने चरागों को आफताब किया,
रहा दुनिया के साथ और लाजबाब किया,
हाथ बढेगा सदा जगत कि रहनुमाई में,
मिट्टी के हाथों को मैंने तो किताब किया,