इंसानियत
1: मनुष्य प्रवृत्ति है लालची, करता हरदम भूल ,
लाभ मिले तो राह दे, है हानि में देता शूल ।
2: मानुष तन जो है मिला, इसका करो उपयोग,
धर्म कर्म में लीन हो, तू जागृत करले योग ।
3: अबला बन क्यों फिर रहा, हिय के पट तो खोल,
मिल जाएंगे हरि तुझे, तू समझ तो अपना मोल ।
4: काम काम है कर रहा, सफल हुआ नहीं कोय,
रम जा जो सत्संग में तू, जो चाहे सब होय ।
6: बड़ा मिला नहीं आजतक, जितने मिले सब छोट,
मिलते हैं सब खुशियां दिखा, मन में रखते हैं खोट ।।