इंसानियत सदियों का सम्मोहन तोड़ सकती है,
**न जाने इंसानियत कब ?
हिंदू, मुस्लिम, सिख,ईसाइयत से बाहर आएगी,
न जाने क्यों ?
कौम का गदला पानी,
बार-बार निथर कर भी,
क्यों गदला हो जाता है ?
न जाने क्या ? कह गए हमारे,
अल्लाह, मसीह और भगवान,
या
जो समझ नहीं पाया आज का ये इंसान,
इस पथ पर न जाने क्यों ?
इंसान इंसान का बैरी है,
हो उजाला बाहर कैसे ?
जब अंतस में अंधकार घनेरा हो,
डॉक्टर महेन्द्र सिंह हंस