इंसानियत प्यार का पैगाम है
मुह में राम,नाम बदनाम है
वो ही अल्लाह और राम है
बेच कर ईमान लड़ते हो
बताओ क्या अब अंजाम है
धरती एक,एक ही अम्बर
इंसानियत क्यू यूँ बदनाम है
लोग अक्सर चुना लगाते
क्या ये भी एक इलज़ाम है
हर तरफ़ आ रहा है नज़र
बिक रहा जो खुलेआम है
आरोप प्रत्यारोप चलते रहे
कैसी तारों भरी शाम है
मुनासिब हो तो समझा लो
इंसानियत प्यार का पैगाम है
वोटो के खातिर बाट रखा
सियासत का यही काम है
ज़िन्दगी के तूफान समेटो
इसमें कभी नही आराम है
तवक़्क़ो नही तुझसे कोई
अब काम धाम सब जाम है
लड़ते हो क्यू मंदिर मस्जिद पे
क्या अब दुश्मनी सरे आम है
-आकिब जावेद