इंसानियत दम तोड़ती
हक़ बोल कलम हलक में चुभती है
अंधेरा चीरती एक किरण दिखती है,
राज करती है अमीरी आज महलों में
गरीबी पत्थर तोड़ती सड़क में दिखती है,
महफूज़ हाथों सौप दिया बाग हमने
पेड़ से कटी साख़ सिसकती दिखती है,
जुगनूओ के ऐतवार का रहा मलाल
रोशनी तो चिराग़ो से ही दिखती है ,
कैसे कह दूँ शहूर आ गया उनको
इंसानियत दम तोड़ती शहर दिखती है,
निवाला छीन लेते है वो मजलूम का
राहत की सौगात कागज में दिखती है ,
शेख जाफर खान