इंसानियत की लाश
आज देश में इंसानियत की लाश
एक कोने में पड़ी सड़ रही है ।
नेता लगातार जनता को
आपस में लड़ा रहे हैं,
और बेवकूफ़ जनता –
आपस में लड़ रही है ।।
जैसे एक बंदर —
दो बिल्लियों की लड़ाई में
उनकी रोटी खा जाता है
वैसे ही जनता रूपी बिल्ली की लड़ाई के बीच
बंदर रूपी नेता आ जाता है।
अगर जीवित रहना है,
तो सबसे पहले —
आपस में लड़ना छोड़ दो
और जिस कड़ी से नेता तुमसे जुड़ा हुआ है
उस कड़ी को तोड़ दो ।
ऐसे इंसान से नाता रखना घातक है
जिसकी आँखों के सामने
देश का आम आदमी सड़ता रहे
और वो ‘सब सही है’ कहकर
हास्य और श्रृंगार की कविता ‐
पढ़ता रहे ।।
— सूर्या