इंसानियत की राह कभी छोड़ना नहीं
भूलके भी दिल किसी का तोड़ना नहीं
इंसानियत की राह कभी छोड़ना नहीं
भूलना कभी न प्रेम-स्नेह की भाषा
पालना कभी न हीन भाव- निराशा
दुर्भावनाओं से कभी भी सामना न हो
छल या बुराई की कोई भावना न हो
भलाई से कभी भी मुख को मोड़ना नहीं
इंसानियत की राह कभी छोड़ना नहीं
किसी का भी लाचारियों से नाता न जुडे़
गलती से भी गरीबी का मजाक न उडे़
उत्थान के समाज का एक सपना हो दिल में
असहायों की मदद का एक जज्बा हो दिल में
स्वार्थ से रिश्ता कोई भी जोड़ना नहीं
इंसानियत की राह कभी छोड़ना नहीं
व्यवहार से किसी को परेशानी नहीं हो
अपने लाभ में किसी की हानि नहीं हो
दंभ में किसी या किसी मद में न रहना
लाभ के लिए कभी भी झूठ न कहना
सत्य का गला कभी मरोड़ना नहीं
इंसानियत की राह कभी छोड़ना नहीं
विक्रम कुमार
मनोरा, वैशाली