इंसानियत की चीखें
मैं अपने ज़मीर को
कैसे बदनाम करूं
अब अपनी गैरत को
कैसे रूसवा करूं!
इंसानियत की चीखें
बिल्कुल अनसुनी करके
अपने आपको आख़िर
कैसे गज़लख्वां करूं!!
तेरे हुस्न की कशिश तो
अभी कम नहीं हुई लेकिन
मेरी हयात की तल्खियां
बढ़ गई हैं क्या करूं!
तख्त और ताज की
साजिशों के मद्देनजर
वक़्त की मांग है कि
मैं तुरंत फ़ैसला करूं!!
Shekhar Chandra Mitra
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